हाल ही में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सत्ता में जबरदस्त सियासी उठापटक देखने को मिल रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बीच बढ़ते विवाद ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। इसके साथ ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मुख्यमंत्री संग बैठक के दौरान योगी आदित्यनाथ को नजरअंदाज किए जाने की घटनाएं भी चर्चा का विषय बन गई हैं। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उत्तर प्रदेश में करारी हार का सामना करना पड़ा जिसके बाद से जब योगी आदित्यनाथ के ऊपर सवाल उठने शुरू हो गए , और प्रधानमंत्री के 2024 के सपथ समारोह से पहले भी मोदी ने सबका अभिवादन किया वही योगी आदित्यनाथ जी नजरंदाज कर दिया जिसके बाद न्यूज चैनलों पर इस तस्वीर को लेकर काफी चर्चा का विषय बना था ।
और अब यह दूसरी बार हुआ है जा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुखमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के बीच खटास नजर आ रहा ।
योगी आदित्यनाथ ने 2017 में उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद से अपनी कट्टर हिंदुत्ववादी छवि के साथ प्रशासनिक सख्ती का परिचय दिया है। उन्होंने अपराध नियंत्रण और धार्मिक स्थलों के पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिससे उन्हें राज्य में जनता का व्यापक समर्थन मिला है। हालांकि, हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा की सीटों की संख्या में गिरावट के बाद से उनके नेतृत्व पर सवाल उठने लगे हैं।
केशव प्रसाद मौर्य, जो उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री हैं, योगी सरकार के एक महत्वपूर्ण स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने राज्य में भाजपा की जमीनी पकड़ मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हाल के दिनों में मौर्य ने योगी आदित्यनाथ की नीतियों पर खुलकर सवाल उठाए हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि पार्टी के भीतर सत्ता संघर्ष चरम पर है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया बैठक, जिसमें योगी आदित्यनाथ को नजरअंदाज किए जाने की खबरें आईं, ने इस विवाद को और हवा दी है। बैठक के दौरान मोदी ने अन्य मुख्यमंत्रीयों से अभिवादन किया, लेकिन योगी को बिना देखे ही आगे बढ़ गए। इससे पहले भी, जब उत्तर प्रदेश में भाजपा की सीटें कम हुई थीं, तब भी मोदी ने योगी से सार्वजनिक तौर पर दूरी बनाई थी। इन घटनाओं ने भाजपा के आंतरिक मुद्दों और शीर्ष नेतृत्व के बीच विचारधारा और नीति पर असहमति की ओर इशारा किया है।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या उत्तर प्रदेश में सत्ता संतुलन में बदलाव होने वाला है। योगी आदित्यनाथ की कड़ी प्रशासनिक शैली और मौर्य की संगठनात्मक शक्ति के बीच संघर्ष ने राजनीतिक विशेषज्ञों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि भाजपा के लिए आगे की राह क्या होगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर यह स्थिति बनी रहती है, तो इसका असर आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन पर पड़ सकता है। योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य दोनों ही भाजपा के महत्वपूर्ण चेहरे हैं, और उनके बीच मतभेद पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ा सकते हैं। यह देखना होगा कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, इस स्थिति को कैसे संभालते हैं और क्या कोई समन्वय बैठा पाते हैं या नहीं।
कुल मिलाकर, उत्तर प्रदेश में भाजपा की सत्ता में हो रही यह उठापटक राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बीच के इस संघर्ष से न केवल राज्य बल्कि राष्ट्रीय राजनीति पर भी असर पड़ सकता है। आगे के दिनों में इस विवाद का क्या नतीजा निकलता है, यह देखना दिलचस्प होगा। क्या भाजपा एकता बनाए रखते हुए इस चुनौती का सामना करेगी, या फिर यह विभाजन उनके चुनावी भविष्य पर असर डालेगा? यह सवाल अब सबकी नजरों में है, और इसका उत्तर आगामी समय में ही मिलेगा। अब आगे इसके बारे में जो भी परिणाम आने वाले है वो देखने लायक होगा और काफी इंट्रेस्टिंग होगा तो आपको पता भी नहीं चलेगा , इसलिए आप हमारे इस पोस्ट पर एक अच्छा सा कमेंट कर दीजिए , और नोटिफिकेशन को ऑन कर लीजिए । फिर मिलेंगे नए खबर के साथ ।।