हाल ही में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बजट को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने न सिर्फ बजट को आड़े हाथों लिया, बल्कि सरकार की नीति और प्राथमिकताओं पर भी सवाल उठाए। उनके इस भाषण का मुख्य फोकस बजट में ओबीसी, एससी और अन्य कमजोर वर्गों के प्रतिनिधित्व की कमी थी।
राहुल गांधी ने अपने भाषण में जोर देकर कहा कि सरकार द्वारा पेश किए गए बजट में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) और एससी (अनुसूचित जाति) के प्रतिनिधित्व की कमी है। उन्होंने इस पर भी सवाल उठाए कि आदिवासी समुदाय का भी बजट में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। राहुल गांधी ने यह दावा किया कि सरकार ने इन महत्वपूर्ण वर्गों को नजरअंदाज किया है, जिससे समाज में असमानता और बढ़ेगी।
राहुल गांधी के इस भाषण के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने हंसते हुए प्रतिक्रिया दी, जिससे राहुल गांधी ने असहमति जताई। उन्होंने कहा कि यह हंसने की बात नहीं है, बल्कि गंभीर मुद्दा है, क्योंकि यह देश की बड़ी आबादी की उपेक्षा का मामला है। राहुल गांधी ने इस पर जोर दिया कि समाज के सभी वर्गों को बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए, और इसके लिए जातीय जनगणना होना आवश्यक है। उनका मानना है कि इससे सरकार को विभिन्न जातियों की संख्या और उनकी स्थिति के बारे में सही जानकारी मिलेगी, जिससे नीतियां बेहतर तरीके से बनाई जा सकेंगी।
इसके साथ ही राहुल गांधी ने बजट की एक पुरानी परंपरा, जिसे “हलवा सेरेमनी” कहा जाता है, पर भी सवाल उठाए। उन्होंने इस सेरेमनी का एक फोटो दिखाने की कोशिश की, जिसमें बजट की तैयारियों के दौरान हलवा बनाते हुए वित्त मंत्रालय के अधिकारी दिखाई देते हैं। जैसे ही उन्होंने यह फोटो दिखाने की कोशिश की, उनका कैमरा ऑफ कर दिया गया। इस पर राहुल गांधी ने नाराजगी जताई और लोकसभा अध्यक्ष से शिकायत की। उन्होंने कहा कि ऐसा करके उन्हें अपनी बात रखने से रोका जा रहा है।
राहुल गांधी ने सत्ता पक्ष के सदस्यों से भी सवाल किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब उनके सामने बहस में क्यों नहीं आते। उन्होंने दावा किया कि पहले मोदी सरकार के मंत्रियों की तरफ से जवाब आता था, लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है। राहुल गांधी का कहना था कि सरकार अब विपक्ष के सवालों का सामना करने से बच रही है।
इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि बजट और सामाजिक न्याय के मुद्दे पर विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच गहरा मतभेद है। राहुल गांधी ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह देश के कमजोर वर्गों की समस्याओं को नजरअंदाज कर रही है। उन्होंने जातीय जनगणना की मांग की, जिससे विभिन्न वर्गों के अधिकारों की रक्षा की जा सके और उन्हें उचित प्रतिनिधित्व मिल सके।
वहीं, सत्ता पक्ष की तरफ से इस पर कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई, बल्कि निर्मला सीतारामन का हंसना और राहुल गांधी का कैमरा बंद करना ही चर्चा का केंद्र बन गया। यह घटना संसद में सरकार और विपक्ष के बीच संवाद की स्थिति को भी दर्शाती है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि विपक्ष के सवालों का जवाब देने के बजाय सरकार कभी-कभी उनसे बचने की कोशिश करती है।
राहुल गांधी का यह भाषण भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जहां उन्होंने समाज के सभी वर्गों के समान अधिकार की वकालत की। यह दर्शाता है कि वह सरकार की नीतियों को चुनौती देने और सामाजिक न्याय के मुद्दों को उठाने में गंभीर हैं। इस घटनाक्रम से यह भी स्पष्ट होता है कि भारतीय राजनीति में अब जातीय जनगणना और सामाजिक न्याय के मुद्दे पर बहस तेज हो सकती है।
आगे आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस पर क्या रुख अपनाती है और विपक्ष की मांगों का क्या जवाब देती है। क्या जातीय जनगणना की मांग पूरी होगी, और क्या बजट में ओबीसी, एससी और आदिवासी समुदायों को उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा? ये सवाल भारतीय राजनीति के भविष्य को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।